उम्मीद के दियो को हम ख्वाबोमे जला लेते है,
अपनी हसरतो को इस तरह थोड़ी और हवा देते है
अपनी हसरतो को इस तरह थोड़ी और हवा देते है
माना के तक़दीर आख-मिचौली खेलती है हमसे,
हम भी तक़दीर से खेलकर जलने का मजा लेते है
हम भी तक़दीर से खेलकर जलने का मजा लेते है
रोज उठाते है लाश कंधो पर अपनी ख्वाहिशो की
रोज कफन उठाकर उनका चहेरा धीरेसे जाख लेते है
रोज कफन उठाकर उनका चहेरा धीरेसे जाख लेते है
ढलते ढलते कभी तो ढल जाएगी ये शामे गम सनम
इसी उम्मीदसे सहेरको बड़ी मुद्दतसे सदा देते है
इसी उम्मीदसे सहेरको बड़ी मुद्दतसे सदा देते है
होगी कदर कभी तो हमारे इन होंसलो की ओ खुदा
बहेलाकर दिल सारे फैसले मुकदर पर छोड़ देते है
बहेलाकर दिल सारे फैसले मुकदर पर छोड़ देते है
By Deepa Sevak.
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