इस तरह तू नजर का नूर बनता जा रहा है
जो तन्हाईया मुझे डसती रहेती थी अबतक
उन्ही से आजकल रिश्ता पनपता जा रहा है
जब शाम की देहलीज पर रात देती दस्तक
चाँद से पहेले तू मुझमें खीलता जा रहा है
उतर गया चहेरा चाँद का चौदवी की रातमे
की मेरी रातोमे रोशनी तू भरता जा रहा है
चमक रहा है चहेरा मेरा आईने की तराह
की तू रूह की गहेराईमें उतरता जा रहा है
घुलती रही सांसोमे तेरे खयालो की खुशबु
देख मेरी नसनसमें तू छलकता जा रहा है
जन्नत सा लगता है जहां तेरे तस्सवुरमें
"दीपा"के जहां का तू खुदा बनता जा रहा है
...दीपा सेवक.